Shodashi Secrets
Wiki Article
Kadi mantras are regarded as the most pure and will often be useful for increased spiritual methods. They are really affiliated with the Sri Chakra and therefore are considered to deliver about divine blessings and enlightenment.
रागद्वेषादिहन्त्रीं रविशशिनयनां राज्यदानप्रवीणाम् ।
हस्ते पङ्केरुहाभे सरससरसिजं बिभ्रती लोकमाता
Worshippers of Shodashi seek not just substance prosperity but will also spiritual liberation. Her grace is alleged to bestow both equally worldly pleasures along with the indicates to transcend them.
षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram
ह्रींमन्त्राराध्यदेवीं श्रुतिशतशिखरैर्मृग्यमाणां मृगाक्षीम् ।
The choice of mantra form just isn't simply a issue of choice but demonstrates the devotee's spiritual objectives and the nature of their devotion. It is just a nuanced aspect of worship that aligns the practitioner's intentions with the divine energies of Goddess Lalita.
वृत्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च श्री चक्रमेत दुदितं पर देवताया: ।।
Devotees of Shodashi interact in several spiritual disciplines that goal to harmonize Shodashi the head and senses, aligning them with the divine consciousness. The following factors outline the progression in direction of Moksha by means of devotion to Shodashi:
लक्ष्या या चक्रराजे नवपुरलसिते योगिनीवृन्दगुप्ते
लक्ष्मी-वाग-गजादिभिः कर-लसत्-पाशासि-घण्टादिभिः
Cultural activities like folks dances, new music performances, and plays will also be integral, serving to be a medium to impart conventional tales and values, especially for the youthful generations.
षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।